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आज प्रथम मुस्लिम शिक्षिका फातिमा शेख की जयंत है। फ़ातिमा शेख़, सावित्रीबाई फुले की सहयोगी थीं। जब ज्योतिबा और सावित्री फुले ने लड़कियों के लिए स्कूल खोलने का बीड़ा उठाया, तब फ़ातिमा शेख़ ने भी इस मुहिम में उनका साथ दिया। उस ज़माने में अध्यापक मिलने मुश्किल थे। फ़ातिमा शेख़ ने सावित्रीबाई के स्कूल में पढ़ाने की ज़िम्मेदारी भी संभाली, इसके लिए उन्हें भी समाज के विरोध का सामना करना पड़ा।

फुले के पिता ने जब दलितों और महिलाओं के उत्थान के लिए किए जा रहे उनके कामों की वजह से उनके परिवार को घर से निकाल दिया था, तब फ़ातिमा शेख़ के बड़े भाई उस्मान शेख़ ने ही उन्हें अपने घर में जगह दी। फ़ातिमा शेख़ और उस्मान शेख़ ने ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई को उस मुश्किल समय में बेहद अहम सहयोग दिया था लेकिन अब बहुत कम ही लोग उस्मान शेख़ और फ़ातिमा शेख़ के बारे में जानते हैं। एक ऐसे समय में जब देश में सांप्रदायिक ताक़तें हिंदुओं-मुसलमानों को बांटने में सक्रिय हों, फ़ातिमा शेख़ के काम का उल्लेख ज़रूरी हो जाता है। साथ ही मुस्लिम महिलाओं के लिए भी वह प्रेरणा होनी चाहिए।

उस समय फ़ातिमा शेख़ के काम को स्वयं मुस्लिम समाज में कितना समर्थन मिला, ये कहना मुश्किल है लेकिन हालात के मद्देनज़र ये कहा जा सकता है कि उन्हें भी विरोध का ही सामना करना पड़ा था। नारी शिक्षा और धर्मनिरपेक्षता के सवाल पर सरोकार रखने वाले लोगों के लिए ये बहुत बड़ी चुनौती है कि वे फ़ातिमा शेख़ और उस्मान शेख़ के योगदान पर भी विमर्श करें। फातिमा शेख की जयंती पर उन्हें शत, शत नमन।

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