Special Story 

यह एक प्रक्रिया है। इससे पहले मूर्ति सबकी है। मूर्तिकार उस पर चढ़कर उसे तराशता है। मज़दूर उसे ढोकर मंदिर तक पहुँचाते हैं। यहाँ तक मूर्ति छुआ-छूत नहीं करती।

फिर उसकी प्राण प्रतिष्ठा होती है।

इसके बाद मूर्ति को छूने का अधिकार एक जाति के पास चला जाता है। बल्कि ज़्यादातर मामलों में तो मूर्ति या विग्रह को जहां रखा जाता है, वहाँ यानी मंदिर के गर्भ गृह में बाकी जातियों का प्रवेश वर्जित हो जाता है। वहाँ जाने की कोशिश करने पर कई बार सिर फोड़ दिए जाने की घटना इतिहास में हुई है।

इसे ही शास्त्रों में प्राण प्रतिष्ठा कहा गया है।

इतिहास में पुजारियों ने कोई मूर्ति नहीं बनाई। पर मूर्ति बनाने के बाद प्राण प्रतिष्ठा करके वे मूर्ति का कंट्रोल अपने हाथ में ले लेते हैं। मूर्ति उन्हें सम्मान और पैसे देने लगती है। प्राण प्रतिष्ठा के बाद मूर्ति बनाने वाला उसे छू नहीं सकता। गर्भ गृह में घुस नहीं सकता। प्राण प्रतिष्ठा के बाद मूर्ति छुआ-छूत करने लगती है।

By Leela Dhar Chauhan

LeelaDhar Chauhan (9459200288) MD/Chief Admin AAS 24news email-leeladhar9@gmail.com

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